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हरि बोल रे -2

क्यों दर-दर को भटक रहे, 

 नद, सरवर, कूप, तडाग रे,

 हरि बोल रे।

 तन का मैल धुले, 

तो जाना,

 मन को क्या धो पाए रे, 

हरि बोल रे ।

क्या छूट जाएंगे पाप?

 जो जन्म-जन्म से लादे रे,

 हरि बोल रे।

 पापों को धोती गंगा,

 फिर क्यों धरा?

अनगिनत दुष्टों से भारी रे,

 हरि बोल रे।

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