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मन

 मन की सीमाएं, जो साधे,

 वह सच्चा साधक कहलाए।

 इस बिगड़े,

 हठी बालक को,

जो रस्ते पर लाए

वह सच्चा साधक कहलाए।

 सदा ही चंचल,

 नित्य पवन सा,

गति न समझी जाए,

 जो समझे,

 साधन कर ले,

 वह जीवन तर जाए।

 तन है शिथिल,

 यथावत स्थिर,

 मन की ठौर न पाए,

 चांद, सरोवर, पर्वत, नदिया,

 सबसे मिल चली आए,

 मन ही परम पूज्य,

 है ईश्वर,

 गर स्थिर हो जाए।

 मन की सीमाएं ,जो साधे,

 वह सच्चा साधक कहलाए।

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