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सब एकल रहते हैं

साझे चूल्हे चौके माई, 

अब क्यों जल नहीं पाते ?

बड़े-बड़े घर भी क्यों, 

छोटे पड़ जाते ?

क्यों घर के बड़ों की बातें, 

खट्टी अमिया जैसी, 

कड़वी लगती है ?

क्यों किसी की, 

कही अनकही सह ना पाते? 

ताई, बूआ ,मासी दूर की, 

रहने थीं आती,

अब मां, बेटी, बहुएं भी 

निभा न पातीं।

एक बिछाना काफी था ,

दस बच्चों को ।

एक ही थाली काफी थी, 

रोटी खाने को। 

एक रजाई में घुसकर सब, 

छोटी टीवी तकते थे ।

हर हाथ में टीवी खेल रहा ,

फिर भी लड़ते हैं।

क्यों हर रिश्ता बोझ बराबर, 

सारे नाते झूठे लगते हैं? 

क्या अब हम विकसित देश हो गए? 

सब एकल रहते हैं।

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