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वह गुरु है

हर बार अनेक स्वरूपों में, 

प्रभु आते हो कई रूपों में,

गुरु बनकर ।

कभी माता, कभी पिता बन, 

कभी धर वेश ज्येष्ठ का, 

लाते हो पार किनारे,

बीच भंवर से, 

गुरु बनकर। 

गुरु के रूप अनेक हैं ,

वह पल-पल साखी।  

जब भी हो मझधार,

वह आता बन माझी। 

नई राह और सही राह, 

जो सिखला दे, वह गुरु है। 

जीवन का आधार नया, 

दिखला दे, वह गुरु है। 

जो क्षमा करे, दुःख सहकर भी, 

उन्नत भविष्य का सर्जक,

 वह गुरु है।

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