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वह शून्य है

हर सांस का आधार बन,

वह अपेक्षित,

शून्य में है संग जो, 

जो शून्य है, अदृश्य है ,

पर शून्यता के समय में, 

जो संग है।

 आभास है, निर्विकल्प का, 

पग पाथेय भी निस्तेज है, 

उस समय की शून्यता में,

शून्य ही पाथेय है।  

जो स्नेह का प्रतिबिंब है, 

स्पर्श देकर निजकारों का, 

जो शून्य में आह्लाद दे , 

 वह शून्य है।

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