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थम जाना ना

बिन आंधी पानी झंझावातों के, 

कौन फसल बनती पकती है, 

कौन जगत में ऐसा, 

जड़ हो या चेतन, 

जिसे बिन संघर्ष मिला ,

जीवन पावन ,

जड़ को घिसकर बार-बार, 

नया आकार मिला करता है, 

जो घिसने से इंकार करे, 

वह पत्थर ही रह जाता है, 

चेतन फिर कैसे पाए ,

बिन गोते के मोती, 

खाली सीपी हाथ है लगती, 

तट पर खड़े-पड़े को ,

यह जीवन कहता है हमसे,

 हर बार यही समझा कर, 

जीवन के झंझावातों से, 

थम जाना ना घबरा कर।

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