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बच ले

उत्तेजित हृदय गर शांत रहता, 

क्षणिक आवेश में ,

कुछ गलत ना कार्य करता।

साधना मन की, तन की, 

जीवन की सब है सफल, 

तभी, जब नियंत्रण कर सके, 

खुद पर सही। 

क्या हुआ? मन का ना पाया, 

क्या हुआ? मन को न भाया, 

फिर करेंगे, मन की कभी। 

यह सोचकर, 

आवेश की मूढता से ,

पहले जरा बच ले।

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