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थोड़े शब्दों में

संयम की पाठशाला में, 

अब गिनती के बच्चे, 

इन गिने-चुने के साथ से, 

कैसे बचेगी नींव संयम की,

किसी के पास इतना समय नहीं, 

जो सुने तुम्हारी घंटों की फटकार, 

बस अपनी फरियाद लगा दो, 

थोड़े शब्दों में।

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बहुत छिछलापन है,  वैचारिक नभ में,  जग के…  सबको भाती प्यारी बातें,  सबको प्रिय हैं सुंदर चेहरे,  पीछे की सुंदरता,  परखने की क्षमता,  ओछी हो गई…  नहीं फुर्सत है किसी को,  शब्दों के पीछे झांके,  जो दिखता है जैसा हो,  वह वैसा ही समझा जाता है…  सबको हक है, चिल्लाने का, सबको हक है ,बक जाने का,  जिसकी जितनी क्षमता वैचारिक,  वह उतना ही तो सोचेगा…  पर इस तानेबाने में आखिर , विकसित कैसी होगी  फिर पौध नई…  कैसी होगी उसकी ऊर्जा…  कितना विकसित मस्तक होगा…

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