एक सुराख सा लगता है, क्या कोई बूंद दब गया? इस रेत की महफिल में , या कोई छोड़ गया फिर, देख उड़ती धूल , एक आंसू बहा कर। एक सुराख सा लगता है , क्या अंजुमन में लौ जला , चिंगारी उठी और जल गया, फिर घर मेरा, या स्वप्न के सुलगते चीथड़े थे, जो हृदय को फूंक कर , चुप हैं खड़े । एक सुराख सा लगता है, क्या कोई आ रहा है, दूर से छिपकर घने पत्तों में, या धोखा हुआ, फिर कोई, आंख का, दूर तक खाली पड़ा मैदान है । एक सुराख सा लगता है, क्या कोई बूंद दब गया ? इस रेत की महफिल में, या कोई छोड़ गया फिर, देख उड़ती धूल, एक आंसू बहा कर।
विभिन्न विषयों पर मौलिक कविताएं, कहानियां।