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फिर आज

स्वयं से इतर ,

जो अभिव्यक्ति है,

दुख की व्यथा की, 

वह तुम्हें सहृदय समर्पित। 

तुम करो उनका निवारण।

तुम सुनो उनकी कथा,

 उनकी व्यथा। 


मैं नहीं अनंत तुमसे, 

हर घड़ी यह करूंगी, 

तुच्छ निवेदन जागृति का। 

तुम सुप्त कब हो, 

लेकिन स्वयं के संबंध में, 

मैं नहीं मौन रह पाऊंगी। 


हे प्रभु मैं नहीं ईश्वर,

किसी के मौन का ,

किसी विलाप का, 

चिर स्मरण तुम्हें है। 


तो जग की फैली, 

चादर वेदना की, 

उसमें कुछ फूल प्रेम के, 

कुछ क्षण विस्मृति के, 

फिर आज डाल दो

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