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मर रहे हैं

देखो तो सभ्यता का ,

कैसा ये नाच नंगा, 

हर ओर है तबाही ,

हर ओर बेबसी है। 


इंसानियत की रक्षक, 

सौदागरों की टोली ,

है किसकी नेकनीयत ,

जब लग रही हो बोली ।


हर ओर बदहवासी, 

हर शख्स गमनशी है,  

ताश के पत्तों से, 

सपने बिखर रहे हैं। 


यह कैसी जिंदगी है ,

यह कैसा मेरा तेरा ,

जब हम ही ना रहे तो, 

क्या धर्म का बखेड़ा ।


कोई मुझे बता दे, 

एक बात तो समझा दे ,

ईश्वर वो कौन जिसने ,

आपस में है लड़वाया। 


वह किसका मसीहा है ,

जो कहता मार डालो, 

जो कहता खत्म कर दो, 

जो कहता जला डालो ।

 

लाशों की ढेर पर जो, 

सियासतों के मेले, 

चलते रहे सदियों से, 

वह अब भी चल रहे हैं। 


हम कल भी मर रहे थे। 

हम अब भी मर रहे हैं।

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