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भिखारी है

फटी झोली लटकाए, 

जो बार-बार आता है, 

गंदे चीथड़ों से सना, हाथ फैला, 

शायद पूरी जन्नत ही मांग रहा, 

क्या केवल वही भिखारी  है?


रोज-रोज मंदिर के बाहर, 

स्टेशन पर या सिग्नल पर, 

नित ओढ़े फटे पुराने, 

उम्र नहीं पहचानी जाती, 

ऐसे लोगों का पूरा एक जो कुनबा है, 

क्या केवल वही भिखारी हैं? 


मंदिर मस्जिद के भीतर, 

सर पटक पटक रखने वाले, 

सुंदर कपड़ों और गाड़ी से ,

सज कर निकले, 

जो अंदर मांग के आते हैं ,

बाहर दान चढ़ाते ,

क्या वे नहीं भिखारी हैं? 


जो दर-दर भटक रहे, 

नित नई फरमाइशों की ,

फेहरिस्त लगाते, झोली नई सजाए, 

क्या वे नहीं भिखारी हैं? 


महंगे वस्त्रों से सजा हुआ ,

खुशबू की बयारों वाला, 

हर इंसान भिखारी है ।

अंतर केवल इतना है ,

वह मांगता है हमसे, 

हम मांग रहे रब से।

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