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चेहरों की किताब

चेहरों की भीड़ में ,

कोई चेहरा ऐसा नहीं, 

जिसकी रेखाएं उन्मुक्त लगे ।


हर चेहरा ओढ़े बैठा ,

कुछ गम, थोड़ी ख्वाहिशें, 

अपनी-अपनी तन्हाई। 


किसी चेहरे ने छुपा रखे ,

कोई छुपा न सका, 

कोई सख्त लगा, 

कोई दग्ध लगा ।


कोई उलझन समेटे, 

खामोश खड़ा ।

कोई चाह कर भी, 

बता ना सका। 

कोई शंकाओं से, 

अभिशप्त लगा।

 

लाखों जाने अनजाने, 

चेहरे देख-देख ,

एक बात समझ में आई, 

यह चेहरों की किताब ,

क्यों किसी के समझ ना आई।

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