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लौट यहां आओगे

स्वच्छंद नहीं उड़ सकोगे प्रिय,  

हर बार तुम्हें वापस खींचेंगे, 

तुम संग उड़ने वाले पंख नए, 


उस सघन डाल की झुरमुट में, 

जो नीड़ बनाया है तुमने, 

वह तुम्हें लूट लाएगा हर पल, 


जो तिनके, जो सूखे पत्ते, 

बीने हैं दिन-दिन तुमने, 

वह तुम बिन नहीं सजेगा। 


सौ बार थपेड़े आंधी के, 

जिस कोटर में काटे तुमने, 

हरियाली की खोई शाम में, 

तुम छोड़ नहीं पाओगे उसको।


 उन्नत क्षितिज देख ललचाकर, 

पंख उठा हंस कर ,खिलकर, 

सबसे छिपकर ,उड़कर, 

तुम कब तक मगन रहोगे। 


जब आएंगे बादल कारे, 

कुछ गरजेंगे ,फिर बरसेंगे ,

तुम कहीं ठहर जाओगे,


लेकिन वापस, याद सताएगी, 

अपने अमरावती सघन वृक्ष की, 

भरमाओगे कुछ समय सहज ,

पर जब तक हृदय मोह में है, 

तुम फिर फिर लौट यहां आओगे। 

स्वच्छंद नहीं उड़ सकोगे प्रिय।


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