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ना ललकार मुझको

सच है संवेदना सही है ,

पर संवेदना के बोझ से ,

ना लाद मुझको। 


मैं नहीं रो सकती निरुदेश्य,

निर्विकल्प,अनुत्तरित 

प्रश्नों पर बार-बार ।

हर बार मेरे आंसुओं की धार, 

ना ललकार मुझको।


गम की स्याही में डुबोकर, 

रंग नया लाऊँ कैसे ,

जो रूठ गया, छूट गया ,

आसमाँ से टूट गया ,

उसे फिर पलकों में, 

कसके छुपाऊं कैसे?

हर बार मेरे आंसुओं की धार ,

ना ललकार मुझको ।


घुट घुट कर घुटन ने ,

जब दामन था छोड़ दिया, 

फिर थामा था आँसुओं ने, 

तिनके सा मुझको। 

पर नहीं,अब नहीं ,

हर बार मेरे आंसुओं की धार, 

ना ललकार मुझको।

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