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दिवाली का त्यौहार

दिवाली के दिए पटाखे,

किसको ना भाते, 

किसे ना भाती फुलझड़ियां।


किसे सुंदर कपड़ों में सजना, 

घर को सजाना प्रिय नहीं लगता, 

कौन कहता है नहीं झूमना, 

थापों पर, नहीं करना श्रृंगार।


नए-नए अलबेले मधुर रस भरे ,

मधुरों का, नहीं करना सेवन, 

नहीं मनाना त्यौहार। 


पर आंखों की कोरों में, 

दो आंसू भी भर लेना, 

उन नैनों की खातिर, 

जिनका आंगन है वीराना, 

जिनका अपना लुटा है इस साल।


हर साल उमंगे मनाते हुए ,

एक बार यह भी दोहराना, 

यह नेमत है हमको प्रभु की ,

जो हम मना रहे त्यौहार।

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