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है क्लेश

बना रहे तुम जो चरित्र, 

वह मुझे नहीं भाता, 

मुझे नहीं भाता, 

लेकिन है क्लेश, 

सदा वह मेरा ही कहलाता। 


मुझ में ढलकर, 

मुझ में गलकर, 

मुझ में रचकर, 

मुझ में पलकर, 

वह छाया है कुछ ऐसा, 

पीड़ित होता हिय, 

कुछ  समझ नहीं पाता। 


बना रहे तुम जो चरित्र, 

वह मुझे नहीं भाता, 

मुझे नहीं भाता ,

लेकिन है क्लेश, 

सदा वह मेरा ही कहलाता। 


हर पल का अपना जीवन है,

उस पल में जो भी होता है,

उसका विश्लेषण करता, 

यह मन मेरा, है उलझ रहा, 

खुद से प्रतिपल। 


बना रहे तुम जो चरित्र, 

वह मुझे नहीं भाता, 

मुझे नहीं भाता, 

लेकिन है क्लेश, 

सदा वह मेरा ही कहलाता।

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