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तरुणी

तरुणी के कोमल हिय ने,

जब सर्वप्रथम यह जाना,

वह क्या है?  कैसी है? 

क्या है नारी की परिभाषा?

 

वह प्रभात की नव किसलय, 

हो उठी सजग, 

उसके अंतर्मन के उपवन में, 

गहरी चेतना उत्पन्न हुई।

 

करुणा, व्यथा, विरह हो, 

अथवा हर्षित मिलन की वेला, 

संयम और सत्कार भरा ही, 

होना था अब जीवन,

 

मधुर हास हो, 

मधुर वाक् हो,  

स्थिरता, गंभीरता हो ,

भूषण चरित्र का, 


अल्हड़ चपल थी जो प्रभा, 

अवगुंठन ले कर,

कुछ लज्जा का, 

सम्मोहित चितवन ले, 

जागी फिर से वह,

तरुणी.......।

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