क्या नूतन ,क्या नवीन हुआ? दिन-रैन वही, सुख-चैन वही, दुख-शोक वही ,कार्य-व्यवहार वही, फिर आडंबर के ढोलों की थापों पर नाच नाच, नया साल बोलो कैसे आरंभ हुआ ? कुछ भी तो बदला नहीं, कुछ भी तो सुलझा नहीं, कोई विवेक जागृत ना हुई , कोई कुत्सा, कुंठा कोई, ना त्याग सके! तो, क्या नूतन, क्या नवीन हुआ? नया साल बोलो कैसे आरंभ हुआ? जगमग रौशन तन है , मन का अंधेरा ज्यों का त्यों, लौ एक भी जो जागृत न हुई, प्रण एक भी जो साकार किया ना, किसी के घर आंगन को, रौशन ना किया, ना आंसू पोंछे, ना थामे हाथ, अनाथों के, तो, क्या नूतन ,क्या नवीन हुआ? नया साल बोलो कैसे आरंभ हुआ? वक्त हाथ से फिसल रहा, तू अपनी राग अलाप रहा, अपनी अपनी डफली के रागों में, सारा जग ही है व्यस्त खड़ा , फिर कुछ अंकों के बदलने से, तारीखों के हेर फेर से , नया साल बोलो कैसे आरंभ हुआ?
विभिन्न विषयों पर मौलिक कविताएं, कहानियां।