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ओ! भ्रमर

ओ ! भ्रमर , 

अब इस गली, 

गुंजन न कर 

सो रहे हैं, 

अब कली के प्राण सारे, 

शाम घिरने को खड़ी है, 

दूर देखो रात काली, 


ओ !भ्रमर, 

नहीं अब कोई, 

स्पंदन है खाली, 

तू जिसे मदमत्त करता था कभी, 

छेड़ता था, खेलता था ,

और परिक्रमा करता था कभी ,

वह कली अब छोड़ डाली, 

हो गई तेरी पराई, 

खो गई है, सो पड़ी है, 

दूर देखो किस क्यारी, 


ओ! भ्रमर, 

अब नहीं उसके प्राणों में 

तुम बसे हो ,

ना उसे अब होश है, 

खुद का ही प्यारे, 

छोड़ दो अब सोच कर यह, 

सोते हुओं को नींद प्यारी।

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