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समझा करो

बहुत मुश्किल होता है, 

बांटना अपनों को, 

समझा करो !

एक उम्र का साथ लंबा छोड़कर, 

अजनबी बनना, 

बहुत मुश्किल होता है ,

समझा करो ! 

समझा करो, 

साझा करना जिस रिश्ते को,  

किसी और से गंवारा न था, 

वह जब गैरों से साझा करे, 

जज्बात अपने,

कितना मुश्किल होगा, 

बहुत प्यारे रिश्ते हैं ,

नाजुक से ,अनमोल बड़े ,

पलकों की छांव में पलते, 

पुतली जैसे,

 वे जब हाथों से हौले से, 

लगते हैं फिसलने ,

बहुत मुश्किल होता है ,

समझा करो !

बचपन से गिनने बैठ गई तो, 

ऐसा लगता है, 

कितने रिश्ते पीछे छूटे, 

कुछ तो ऐसे शीशे से टूटे, 

जिनके टुकड़े भी चुभते हैं ,

हर मोड़ खड़ा ,दम तोड़ पड़ा, 

कोई ना कोई अपना निकला, 

ऐसे अपनों से हाथ छुड़ाना ,

बहुत मुश्किल होता है, 

समझा करो !

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