अपना कहने की सरहद से दूर, एक पेड़ है अमरूद का । हर मौसम में फल लदा, हर बच्चे की पहुंच तक, हर चिड़िया का प्यारा , उस पेड़ पर कोई बंदिशें नहीं हैं, उसे जिधर मन, वह उधर बढ़ सकता है। उसे जितना जी चाहे, उतना फल दे सकता है। हां, वह और पेड़ों से ज्यादा, पत्थर की चोट , डंडों की मार भी सहता है , पर फिर भी वह बेखौफ है , उसे डर नहीं काटे जाने का, उसे डर नहीं छांटे जाने का, इसलिए शायद वह फलता बहुत है, मीठा बहुत है, घना बहुत है , सबको बराबर फल, छाया, घर देता, खुश बहुत है।
विभिन्न विषयों पर मौलिक कविताएं, कहानियां।