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स्फुट हृदय राग के क्षण

स्फुट हृदय राग के क्षण..… 

दीप्ति से आच्छन्न ,

आह्लाद से उज्जवल ,

नयन में तेज, 

हृदय में स्वर जहां, 

जिस क्षण दर्द का आभास नहीं, 

क्षुधा नहीं, प्यास नहीं, 

आलोक रहती चिंतन की, 

प्रमुख में रहता जहां विचार, 

उनकी उत्कृष्टता, उनका प्रवाह ,

स्फुट हृदय राग के क्षण....। 

प्रवाह वह तीव्र हो ,

हो मंद अथवा, 

उसमें डूबने को विकल,

 होता पल में वह जीव, 

जिसने जिया हो, 

स्फुट हृदय राग के क्षण....।

जहां समय की सीमा नहीं, 

अनवरत अक्षुण्ण है 

साम्राज्य जिसका, 

जिसमें उतरकर 

बुभुक्षा तीव्र होती जाती हर पल, 

स्फुट हृदय राग के क्षण ....

दीप्ति से आच्छन्न ,

आह्लाद से उज्जवल, 

नयन में तेज, 

हृदय में स्वर जहां....।

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