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कभी कभी

जज्बात भरी आंधी बनकर

मेरे नैनों में ,

आया करो ना श्याम 

कभी-कभी ।

बरसा करो ना नैनों से 

प्रेम की गंगा बनकर भी ,

कभी-कभी। 

कभी तो उतार कर 

केंचुल अपने, 

यह मन मेरा हल्का हो ले, 

आया करो ना श्याम ।

बहुत दिन बीते 

जो तुम आए ना 

या फिर ,

मैंने नहीं बुलाया तुमको 

तुम मेरे स्पंदन की गांठों में ही तो 

रमते रहे ,

पर मैंने छुआ नहीं ।

अपनी ही गांठों को 

खोल नहीं पाती हूं मैं, 

मैं, में ही उलझी हूं ,

तुम संग बोल नहीं पाती हूं, 

तुम ही  झकझोर कर या 

हौले से ही, 

जगाया करो ना श्याम, 

कभी-कभी ।

आया करो ना श्याम 

कभी-कभी।

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