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हे राम

हे राम रघुकुल नाथ जी, 

हुआ खत्म अब वनवास जी। 

अब आइए विराजिये निज भवन 

शोभा धाम जी। 

मन भाव के पुष्पों से, 

भरकर हथेली राम जी, 

नयनों की ज्योति दीप बाड़े 

तेरी उतारें आरती ।

तुम तो जगत के नाथ हो ,

करते भगत हितकार्य जी। 

अब भगत के हाथों से, प्रभु !

होने दो यह शुभ कार्य जी। 

हे राम रघुकुल नाथ जी 

हुआ खत्म अब वनवास जी। 

कब से भगत तेरे खड़े थे 

राह तकते धाम में ,

अब के गए जो गेह से ,

बीते कई सौ साल जी ।

अब आइए विराजिये निज भवन 

शोभा धाम जी। 

हम भाग्यशाली नाथ जो, 

देखें नयन से आपको ,

वापस खड़े निज भवन जी, 

कितने तपी योगी गए, 

इस आस में तज देह जी।

अब धरा, आकाश, चहूंदिश 

गा रहे वंदन तेरा, 

हैं करोड़ों आत्माएं ,

मृत जीवित करबद्ध जी। 

हे राम रघुकुल नाथ जी ,

हुआ खत्म अब वनवास जी। 

अब आइए विराजिये निज भवन 

शोभा धाम जी।

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