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प्रीत जगा देना

जब प्रीत नयन की निष्ठुर हो

तब आत्मीय दीप जला लेना

आक्रोश भरा जब जीवन हो

तब शाश्वत प्रीत जगा देना।


जब द्वन्द समाये शब्दों में 

कर वृंद पार्श्व में कर लेना 

जब ज्वलन युक्त हो नयन सजल 

आरोह अवगुंठित कर देना।


जब ठिठुर रहा हो शरद प्रिये 

तब ऊष्मित वस्त्र बढ़ा देना 

जब नमीं बदन की ताप मिले 

तब निर्मल नीर बहा देना।


वह असमय अग्रेसित हृदय 

क्षुब्ध हो जब वापस हो जाए 

एक बढ़ा हुआ उत्कर्ष शिथिल 

नेह का बनकर पास आ जाना।


जब प्रीत नयन की निष्ठुर हो 

तब आत्मीय दीप जला लेना 

आक्रोश भरा जब जीवन हो 

तब शाश्वत प्रीत जगा देना।

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