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Showing posts from July, 2024

देना लेना पड़े

वृक्ष से लिपटने, लटकने,  फिर व्यथित हो छिटकने , को बनी हो क्या लता…  क्या तेरा अस्तित्व इसी में है  कि खो दो अपना अस्तित्व…  गर्व से क्या इसलिए  उठती नहीं तुम…  कमजोर शिराओं से लुंज पुंज  वृक्ष पर खोकर रहती हो…  हे लते ! क्या वृक्ष को भी  तुम प्रिय हो…  क्या कभी कहता है वह  तुझ बिन मैं अधूरा था…  तेरे फलों से मैं फला,  संपूर्ण आलोकित हुआ , तेरे दुखों से दुखित हो  क्या जड़ित संवेदन हृदय  दो बूंद में ढलकते हैं कभी…  तू लिपट गई प्रेम से  अब जिन शिराओं में  हे लते ! सौगंध है उसकी तुझे  ना मांग कुछ ऐसा  जो व्यथा का कारण बने  मन प्राण देकर भला  क्या देना लेना पड़े…

सावन

जब बारिश की रातों में  बूंदें छत से टपका करती थीं…  छम-छम गाता था सावन  सब बाग बगीचे खिल जाते थे । तुम बरषा मल्हार थे गाते  वह बावली… घर का कोना-कोना ढंकती थी,  यहां वहां की सुध रखती थी , जाने कितने आंसू पीती थी । रात रात भर नींद चौकन्नी ,  दिन को चैन कहां रहता था … उन पानी की बूंदों से ही  गीला हर एक कोना रहता था,  सीलन की मारी दीवारें  खुलकर सांस कहां लेती थीं, मेघ गरजता देख बावली  अपने छत की जेबें गिनती थी… 

पूरा करती हूं

राधे ! जीवन पथ पर चलते…  चलते गिरते और संभलते  प्रथम चरण पूरा करती हूं । स्मृति का अवगुंठन ले  कज्जल जल नेत्रों में ले   पुष्पों के आंचल में  कुछ कंटक सीकर   मैं प्रथम चरण पूरा करती हूं । राधे ! पग पग पर जागृत थीं तुम  निशा में धवल आकाश सी सज कर  मैं थी भिखारण  तुम दात्री सी बनकर  दुखों का आक्षेप सहती  क्रोध कुंठा ज्वाल में हवी बन  शांति आह्लाद का  प्रतिकार देने वाली  सुनो अब प्रथम चरण पूरा करती हूं  और जितने भी चरण हैं  इस धरा पर  वे तुम्हें कर दूं समर्पित इस घड़ी  भूल जाऊं मैं कहीं ना फिर तुम्हें भी  इसलिए यह दूषित धूरी  रख लो चरणों के पास कहीं  अब कुछ खोकर कुछ पाने को  मैं प्रथम चरण पूरा करती हूं  राधे जीवन पथ पर चलते  चलते गिरते और संभलते  प्रथम चरण पूरा करती हूं…

थाम लूं उसे

वह हवा के झोंके की तरह है  हाथ बढ़ाओ तो आता नहीं…  थाम लूं उसे तो वाह  वरना आह…  वह सोऊं तो सोने नहीं देता  जागूं तो हर आहट में है  हवा की गुनगुनाहट में  सरसराहट में है…  मेरी सोच में शामिल है जो  जिसकी छुअन गुदगुदाती है  जिसकी गाढ़ी छुअन तड़पाती है…  ऐसा है वह  जिसे पाने की ललक में  हर काम बेमतलब…  वह 'मच्छर' चोट्टा  कभी हाथ आए तो  मसल दूं उसे…