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पूरा करती हूं

राधे ! जीवन पथ पर चलते… 

चलते गिरते और संभलते 

प्रथम चरण पूरा करती हूं ।

स्मृति का अवगुंठन ले 

कज्जल जल नेत्रों में ले  

पुष्पों के आंचल में 

कुछ कंटक सीकर  

मैं प्रथम चरण पूरा करती हूं ।

राधे ! पग पग पर जागृत थीं तुम 

निशा में धवल आकाश सी सज कर 

मैं थी भिखारण 

तुम दात्री सी बनकर 

दुखों का आक्षेप सहती 

क्रोध कुंठा ज्वाल में हवी बन 

शांति आह्लाद का 

प्रतिकार देने वाली 

सुनो अब प्रथम चरण पूरा करती हूं 

और जितने भी चरण हैं 

इस धरा पर 

वे तुम्हें कर दूं समर्पित इस घड़ी 

भूल जाऊं मैं कहीं ना फिर तुम्हें भी 

इसलिए यह दूषित धूरी 

रख लो चरणों के पास कहीं 

अब कुछ खोकर कुछ पाने को 

मैं प्रथम चरण पूरा करती हूं 

राधे जीवन पथ पर चलते 

चलते गिरते और संभलते 

प्रथम चरण पूरा करती हूं…

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