लगता है मुझे, सदियों से जगी हूं मैं, थककर चूर हूं मैं, भीगी हुई ठंड से, ठिठुर कर सहमी हूं मैं, लगता है मुझे, जग का पथ अगम, जिस पर चलती रही सदियों, अब भी बाकी है बहुत, कांटों से बचती फिरती हूं मैं, लगता है मुझे, इस पथ पर मैं अकेली नहीं, कोई और भी है साथ मेरे, इसलिए अब तक चली हूं मैं, लगता है मुझे, बचा कर पत्थरों से राह के, जो खींच रहा है मुझे, वह रूठा है अभी, इसलिए नहीं बढ़ती हूं मैं, लगता है मुझे, रुकी हूं जीवन पथ पर, पत्थर की तरह, ठोकर देती, सहती,अड़ी,पड़ी, भूल कर अशेष को, हाथ अपने स्वयं ही, खींचती हूं मैं , लगता है मुझे।
विभिन्न विषयों पर मौलिक कविताएं, कहानियां।