री मानिनी, तू कमलिनी, यह जानकर अपूर्ण है, प्रिय चंद्र आज, तू खिली ही नहीं संपूर्ण हो, नभ से धरा को देखता, वह छुधित सरवर देखकर, कुछ नीर फिर , कह कैसे बहाए ना? री चंचला , तेरे अधर को छू गए, जो बूंद दो, वे धरोहर हैं प्रिय के , जो खोलना चाहते हैं, नयन तेरे , तू देख तो पल भर, नभ में वह अपूर्ण भी, अमा को काट लाया है नई आभा धरा पर...।
विभिन्न विषयों पर मौलिक कविताएं, कहानियां।